स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
15 अगस्त 2016
बहुत से संघर्ष और बलिदान बाद ,भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो गया।
सभी शहीदों के लिए एक श्रद्धांजलि ।
इस शुभ दिन पर , मैं हमारे राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास साझा करना चाहता हूं...
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को स्वतंत्रता के प्रतीक के तौर पर डिजाइन किया गया था। स्वर्गीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने इसके लिए कहा था ‘यह ना सिर्फ हमारी स्वतंत्रता का ध्वज हैै बल्कि सबकी आजादी का प्रतीक है’।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज एक हाॅरीजोंटल तिरंगा है, जिसमें बराबर अनुपात में गहरा भगवा रंग सबसे उपर, मध्य में सफेद और गहरा हरा रंग नीचे है। ध्वज की लंबाई चैड़ाई का अनुपात 2:3 है। सफेद पट्टी के बीच में एक गहरे नीले रंग का पहिया है जो धर्म चक्र का प्रतीक है। इस पहिये की 24 तीलियां हैं।
ध्वज में भगवा रंग साहस, बलिदान और त्याग का प्रदर्शन करता है। इसका सफेद रंग पवित्रता और सच्चाई तथा हरा रंग विश्वास और उर्वरता का प्रतीक है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज बहुत महत्वपूर्ण है और यह भारत के लंबे स्वतंत्रता संग्राम का प्रतिनिधित्व करता है। यह भारत के एक स्वतंत्र गणतंत्र होने का प्रतीक है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के वर्तमान स्वरुप का अस्तित्व 22 जुलाई 1947 को हुई संवैधानिक सभा की बैठक मेें आया। इस ध्वज ने 15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950 तक डोमिनीयन आॅफ इंडिया और उसके बाद से भारत गणराज्य के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर देश का प्रतिनिधित्व किया।भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वैंकया ने डिजाइन किया और इसमें भगवा, सफेद और हरे रंगों की समान पट्टियां हैं। इसकी चैड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के मुकाबले 2:3 है।
सफेद पट्टी के बीच स्थित चक्र को अशोक चक्र कहा जाता है और इसमें 24 तीलियां होती हैं। भारतीय मानक संस्थान यानि आईएसआई के द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार चक्र सफेद पट्टी के 75 प्रतिशत भाग पर फैला होना चाहिये। राष्ट्रीय ध्वज हमारे सबसे सम्मानजनक राष्ट्रीय चिन्हों में से एक है। इसके निर्माण और इसे फहराने को लेकर सख्त कानून बनाए गए हैं। आधिकारिक ध्वज ब्यौरे के अनुसार ध्वज का कपास, सिल्क और वूल को हाथ से कात कर बनाई खादी से बना होना आवश्यक है।
1904 : भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास स्वतंत्रता मिलने से भी पहले का है। सन् 1904 में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया। इसे स्वामी विवेकानंद की एक आयरिश शिष्य ने बनाया था। उनका नाम सिस्टर निवेदिता था और कुछ समय बाद यह ‘सिस्टर निवेदिता का ध्वज’ के नाम से पहचाना जाने लगा। उस ध्वज का रंग लाल और पीला था। लाल रंग स्वतंत्रता के संग्राम और पीला रंग उसकी विजय का प्रतीक था। उस पर बंगाली में ‘बाॅन्दे मातरम्’ लिखा था। इसके साथ ही ध्वज पर भगवान इन्द्र के हथियार वज्र का भी निशान था और बीच में एक सफेद कमल बना था। वज्र का निशान शक्ति और कमल शुद्धता का प्रतीक था।
1906 : सिस्टर निवेदिता के ध्वज के बाद सन् 1906 में एक और ध्वज डिजाइन किया गया। यह एक तिरंगा झंडा था और इसमें तीन बराबर पट्टियां थीं जिसमें सबसे उपर इसमें नीले, बीच में पीले और तल में लाल रंग था। इसकी नीली पट्टी में अलग अलग आकार के आठ सितारे बने थे। लाल पट्टी में दो चिन्ह थे, पहला सूर्य और दूसरा एक सितारा और अर्द्धचन्द्राकार बना था। पीली पट्टी पर देवनागरी लिपि में ‘वंदे मातरम्’ लिखा था।
सन् 1906 में इस ध्वज का एक और संस्करण बनाया गया। यह भी एक तिरंगा था पर इसके रंग अलग थे। इसमें नारंगी, पीला और हरा रंग था और इसे ‘कलकत्ता ध्वज’ या ‘लोटस ध्वज’ के नाम से जाना जाने लगा, इसमें आठ आधे खुले कमल थे। माना जाता है कि इसे सचिन्द्र प्रसाद बोस और सुकुमार मित्रा ने बनाया था। इसे 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता के पारसी बागान में फहराया गया था। इसे बंगाल के विभाजन के खिलाफ बहिष्कार दिवस के दिन सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने भारत की एकता के प्रतीक के तौर पर फहराया था।
1907 : यह ध्वज रंगों और इस पर बने फूल के अलावा सन् 1906 के ध्वज से काफी मिलता जुलता था। इस झंडे के तीन रंग थे, नीला, पीला और लाल और इसमें फूल का आकार काफी बड़ा था।
इसके बाद मैडम भीकाजी रुस्तम कामा का झंडा आया। इस ध्वज को मैडम भीकाजी कामा, वीर सावरकर और कृष्णा वर्मा ने मिलकर बनाया था। इस झंडे को मैडम कामा नेे जर्मनी में स्टूटग्राट में 22 अगस्त 1907 को फहराया और यह ध्वज विदेशी धरती पर फहराया जाने वाला पहला ध्वज बन गया। उस दिन से इसे बर्लिन कमेटी ध्वज भी कहा जाने लगा। यह ध्वज तीन रंगों से बना था, जिसमें सबसे उपर हरा, मध्य में भगवा और आखिरी में लाल रंग था। इस के उपर ‘वंदे मातरम’ लिखा था।
1916 : पूरे राष्ट्र को जोड़ने के उद्देश्य से सन् 1916 में एक लेखक और भूभौतिकीविद पिंगली वैंकया ने एक ध्वज डिजाइन किया। उन्होंने महात्मा गांधी से मिलकर ध्वज को लेकर उनकी मंजूरी मांगी। महात्मा गांधी ने उन्हें ध्वज पर भारत के आर्थिक उत्थान के प्रतीक के रुप में चरखे का चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। पिंगली ने हाथ से काती गई खादी का एक ध्वज बनाया। उस झंडे पर दो रंग थे और उन पर एक चरखा बना था, लेकिन महात्मा गांधी ने उसे यह कहते हुए नामंजूर कर दिया कि उसका लाल रंग हिंदू और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का तो प्रतिनिधित्व करता है पर भारत के अन्य समुदायों का इसमें प्रतिनिधित्व नहीं होता। 1917 : बाल गंगाधर तिलक द्वारा गठित होम रुल लीग ने सन् 1917 में एक नया झंडा अपनाया। उस समय भारत द्वारा डोमिनियन के दर्जे की मांग की जा रही थी। झंडे पर सबसे उपर यूनियन जैक बना था। ध्वज के बचे हुए हिस्से पर पांच लाल और चार नीली पट्टियां थी। इस पर हिंदुओं में पवित्र माने जाने वाले सप्तर्षि नक्षत्र के सात तारे भी बने थे। इस पर उपर की ओर एक सितारा और एक अर्धचन्द्र भी बना था। यह ध्वज आम जनता में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ।
1921 : महात्मा गांधी चाहते थे कि राष्ट्रीय ध्वज में भारत के सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व हो, इसलिए एक नया ध्वज बनाया गया। इस झंडे में तीन रंग थे। इसमें सबसे उपर सफेद, मध्य में हरा और सबसे नीचे लाल रंग था। इस ध्वज का सफेद रंग अल्पसंख्यकों का, हरा रंग मुस्लिमों का और लाल रंग हिंदू और सिख समुदायों का प्रतीक था। एक चरखा इन तीन पट्टियों पर फैलाकर बनाया गया था जो इनकी एकता का प्रतीक था। यह ध्वज आयरलैंड के ध्वज की तर्ज पर बनाया गया था जो कि भारत की तरह ही ब्रिटेन से स्वतंत्रता पाने के लिए संघर्ष कर रहा था। हालांकि कांग्रेस कमेटी ने इसे आधिकारिक ध्वज के तौर पर नहीं अपनाया पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीयता के प्रतीक के तौर पर इसका व्यापक इस्तेमाल हुआ।
1931 : ध्वज की सांप्रदायिक व्याख्या से कुछ लोग खुश नहीं थे। इसे ध्यान में रखते हुए एक नया झंडा बनाया गया जिसमें लाल की जगह गेरुआ रंग रखा गया। यह रंग दोनों समुदायों की संयुक्त भावना का प्रतीक था क्योंकि भगवा हिंदू योगियों और मुस्लिम दरवेशों का रंग है। सिख समुदाय ने ध्वज में अपने प्रतिनिधित्व की मांग की अथवा धार्मिक रंगों को ध्वज से हटाने को कहा। नतीजतन, पिंगली वैंकया ने एक और ध्वज बनाया। इस नए ध्वज में तीन रंग थे। सबसे उपर भगवा, उसके नीचे सफेद और सबसे नीचे हरा रंग। सफेद पट्टी के मध्य में चरखा बना था। सन् 1931 में कांग्रेस कमेटी की बैठक में इस ध्वज को कमेटी के आधिकारिक ध्वज के तौर पर अपनाया गया था।
1947 : भारत को आजादी मिलने के बाद भारत के राष्ट्रीय ध्वज पर चर्चा के लिए राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई। कमेटी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ध्वज को कुछ संशोधनों के साथ अपनाना तय किया। नतीजतन, 1931 के ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अपनाया गया, लेकिन चरखे की जगह मध्य में चक्र रखा गया और इस तरह भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया।
ब्रिटिश भारत ध्वज 1858-1947 : ब्रिटिश भारत का ध्वज सन् 1858 में लाया गया। इसका डिजाइन पश्चिमी हेरैल्डिक मानकों के आधार पर था और यह कनाडा और आॅस्ट्रेलिया सहित अन्य ब्रिटिश काॅलोनियों के ध्वजों से मिलता जुलता था। इस नीले बैनर पर उपरी बाएं चतुर्थांश में यूनियन ध्वज और दाहिनीं तरफ मध्य में शाही ताज और स्टार आॅफ इंडिया बना हुआ था।
उत्पादन
ध्वज के उत्पादन के मानक तय करने के लिए एक कमेटी है। कमेटी ने इसे फहराने के लिए भी नियम बनाए हैं। इस कमेटी का नाम भारतीय मानक ब्यूरो है। इसने ध्वज संबंधी सभी बातों जैसे कपड़ा, डाई, रंग, धागों की गिनती और सभी बातों का विस्तृत विवरण दिया है। भारतीय ध्वज केवल खादी से बनाया जा सकता है। यह दो प्रकार की खादी से बनाया जाता है, एक प्रकार मुख्य हिस्से के काम आता है और दूसरा प्रकार जो ध्वज को डंडे से बांधे रखता है।
राष्ट्रीय प्रतीक होने के नाते हर भारतीय इसका सम्मान करता है। आम लोगों के लिए भारतीय ध्वज संबंधी कुछ नियम बनाए गए हैं।
ध्वज संहिता के अनुसार भारत के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को कुछ महत्वपूर्ण दिन, जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और महात्मा गांधी के जन्मदिन के अलावा फहराने का अधिकार नहीं है। प्रसिद्ध उद्योगपति नवीन जिंदल ने अपने कार्यालय के भवन पर झंडा फहराने पर दी गई चेतावनी को कोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने इसके खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की जो कि अभी विचाराधीन है, लेकिन फैसला आने तक कोर्ट ने आम लोगों को सम्मानजनक तरीके से ध्वज फहराने की अस्थाई अनुमति दी है।
विश्व की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 29 मई 1953 में भारतीय झंडा फहराया गया। विदेशी धरती पर पहली बार भारतीय झंडा मैडम भीकाजी कामा ने फहराया। उन्होंने इसेे जर्मनी में स्टूटग्राट में 22 अगस्त 1907 को फहराया।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज पहली बार अंतरिक्ष में विंग कमांडर राकेश शर्मा के साथ 1984 में गया। राकेश शर्मा के स्पेस सूट पर वह एक पदक की तरह जोड़ा गया था।
अंतिम संशोधन : अगस्त 10, 2016
ध्वज के उत्पादन के मानक तय करने के लिए एक कमेटी है। कमेटी ने इसे फहराने के लिए भी नियम बनाए हैं। इस कमेटी का नाम भारतीय मानक ब्यूरो है। इसने ध्वज संबंधी सभी बातों जैसे कपड़ा, डाई, रंग, धागों की गिनती और सभी बातों का विस्तृत विवरण दिया है। भारतीय ध्वज केवल खादी से बनाया जा सकता है। यह दो प्रकार की खादी से बनाया जाता है, एक प्रकार मुख्य हिस्से के काम आता है और दूसरा प्रकार जो ध्वज को डंडे से बांधे रखता है।
भारतीय ध्वज आचार संहिता
राष्ट्रीय प्रतीक होने के नाते हर भारतीय इसका सम्मान करता है। आम लोगों के लिए भारतीय ध्वज संबंधी कुछ नियम बनाए गए हैं।
- राष्ट्रीय ध्वज को फहराते समय भगवा रंग सबसे उपर होना चाहिए।
- कोई भी ध्वज या प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज से उपर या दाहिनी ओर नहीं रखा जाना चाहिए।
- यदि राष्ट्रीय ध्वज के साथ अन्य ध्वज भी एक ही कतार में लगाने हांे तो उन्हें बांई ओर लगाना चाहिए।
- यदि राष्ट्रीय ध्वज को किसी परेड या जुलूस में थामा जाता है तो उसे दाहिनी ओर लेकर मार्च करना होता है। यदि दूसरे ध्वज भी साथ हांे तो उसे कतार के मध्य में रखना होता है।
- सामान्यतः राष्ट्रीय ध्वज को महत्वपूर्ण इमारतों पर फहराया जाता है, जैसे राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, सचिवालय, आयुक्त कार्यालय आदि।
- राष्ट्रीय ध्वज या उसकी नकल का इस्तेमाल व्यापार, व्यवसाय या पेशे के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय ध्वज को सूर्यास्त के समय उतारना आवश्यक है।
ध्वज संहिता के अनुसार भारत के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को कुछ महत्वपूर्ण दिन, जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और महात्मा गांधी के जन्मदिन के अलावा फहराने का अधिकार नहीं है। प्रसिद्ध उद्योगपति नवीन जिंदल ने अपने कार्यालय के भवन पर झंडा फहराने पर दी गई चेतावनी को कोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने इसके खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की जो कि अभी विचाराधीन है, लेकिन फैसला आने तक कोर्ट ने आम लोगों को सम्मानजनक तरीके से ध्वज फहराने की अस्थाई अनुमति दी है।
कुछ रोचक तथ्य
विश्व की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 29 मई 1953 में भारतीय झंडा फहराया गया। विदेशी धरती पर पहली बार भारतीय झंडा मैडम भीकाजी कामा ने फहराया। उन्होंने इसेे जर्मनी में स्टूटग्राट में 22 अगस्त 1907 को फहराया।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज पहली बार अंतरिक्ष में विंग कमांडर राकेश शर्मा के साथ 1984 में गया। राकेश शर्मा के स्पेस सूट पर वह एक पदक की तरह जोड़ा गया था।
अंतिम संशोधन : अगस्त 10, 2016
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sincerely....Dr Mohit Bansal
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